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Tuesday, January 17, 2012

लोलुआ


शायद यही उसकी नियती थी और संभवतः आखिरी ईक्षा भी|जिस शराब कि बोतल को उसने ताउम्र गले लगाये रखा उसी शराब कि आखिरी घूंट के साथ आखिरी सांस ने भी उसके साथ छोड़ दिया|
                      बात ४-५ साल पुरानी ही सही पर आज भी दिल पर उसके निशा यूँ अंकित है कि जब भी माया चाची नजरो के सामने आती है सारी कहानी मानस पटल पे ताज़ी हो जाती है| बात आज भी मुझे बखूबी याद है वो पल जब हम पहली बार गिरिडीह शहर में रहने आये थे तब मेरी क्या प्रतिक्रिया थी जब मैंने अपने पड़ोसियों को पहली बार देखा|
                                           अपने दो मंजिले मकान के छत पर जाते ही मैंने  बगल के मकान में झाँका तो मेरी आँखें मानो फटी कि फटी रह गयी| टुटा फूटा खपरैल मकान,इधर उधर बिखरे पड़े कुछ पुराने बासन बर्तन, एक गमले में तुलसी का एक पौधा , कुछ पुराने टायर्स और एक बेकार पड़ी साइकिल |
इससे ज्यादा कुछ उस घर में होने कि कोई गुंजाईश ही नहीं लग रही थी|शायद इतनी गरीबी मैंने पहली बार देखी थी| शाम ढले  हम सभी आराम कर रहे थे और अपने नए मकान को घर बना रहे थे  तभी अचानक पड़ोस से मारपीट कि आवाज आई और हमने सब नजरअंदाज करते हुए अपनी बातो में मशगुल रहना उचित समझा|
फजीरे सुबह जब नींद खुली तो देखा पड़ोस कि एक औरत अपने आँगन में बैठकर अपने पति को गालिया देती हुई अपने जख्मो को सहला रही थी और पास बैठा उसका पति अपने अपराधबोध के कारण निरुत्तर बैठा चुपचाप साड़ी गालिया सुने जा रहा था|शायद उसने रात को शराब नशे में अपनी पत्नी कि पिटाई कर दी थी और अब अपनी गलती का एहसास होने के बाद शायद वो अपनी भूल सुधार रहा था|सहसा उनकी नजर मेरी माँ पर गयी जो छत के दुसरे कोने से उन्हें देख रही थी| तभी उस औरत ने मेरी माँ से बातचीत शुरू कर दी और फिर थोड़ी देर में ही मै और मेरी माँ उनके घर गए और माया चाची की मरहम पट्टी की|
माया चाची रहन सहन से भले ही गरीब और ओछी मानसिकता वाली लगती थी पर नीची जात की होने के बाद भी वो रंग रूप स्वभाव में बिलकुल ऊँचे घराने की औरतो जैसी थी पर शायद गरीबी ने उसके चेहरे की रौनक और शरीर की रंगत छीन ली थी|२७-२८ की उम्र में भी वो ४० साल की लगती थी|गरीबी और लोलुआ(माया चाची का पति)
की जुल्म ने शायद उनकी या हालत कर दी थी|
यु तो लोलुआ भी शक्ल-ओ-शूरत में एक अदद सभ्य सुसंस्कृत और विकसित सोच वाला भला मानस लगता था| द्वितीय  श्रेणी से कला संकाय में स्नातक होने के बाद भी नीची जात का होने के कारण उसे नौकरी नहीं मिल रही थी|भूखा क्या न करता कि लोकोक्ति को चरितार्थ करता हुआ लोलुआ रिक्शा चला कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था|
इन सब बातो के बीच अचानक माया चाची उठी और चाय बनाने कि खातिर रसोई कि ओर जाने लगी और तभी चक्कर खाकर गिर पड़ी| हमने उन्हें बिस्तर पे लिटाया और फिर उनकी हालत सुधरने पर हम वापस आ गए| एक औरत होने के नाते मेरी माँ ने लोलुआ से बात कर माया चाची कि देखभाल करने पर जोर देना उचित समझा|मेरी माँ ने इस बात को लेकर मेरे पिताजी से बात कि और फिर पिता जी के मान जाने पर तय हुआ कि आज रात को हम उन्हें अपने घर पर बुलाकर उन्हें समझायेंगे|सब कुछ सही था और लोलुआ भी हमारी बात पर अमल करने को राजी हो गया|फिर कुछ दिनों तक सब कुछ शांत रहा| मेरा दाखिला शहर के तथाकथित बेहतरीन स्कूल में करवा दिया गया|
शहर अब औधौगीकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव में आकर तीव्र प्रगति कर रहा था|कुछ दिनों में ही शहर का रंग रूप बदल गया था| पिछले २-३ महीनो  में कई नए रंग देख लिए थे मैंने ज़िन्दगी के। पर कहते है न कि कोई कितना भी अनुभवी क्यों न हो कोई न कोई ऐसी बात होती है जो उसे भी नयी लगती है। औद्योगीकरण से रोज़गार का सृजन हुआ और लोलुआ को मिली नौकरी| थोड़े ही दिनों में लोलुआ ने नयी ज़मीन खरीदी और पुराने घर को किराये पे देकर एक सब्जी कि दूकान खोल ली| माया चची दिन भर दूकान चलती और लोलुआ काम पे जाता| नयी जगह घर बनाकर लोलुआ और माया चाची ने हमलोगों से थोड़ी दूरी बना ली थी|
                                 लोलुआ के नए दोस्त बने| दो भाई जीनके नाम  जयललवा और हरलालवा| देशी शराब का ठेका खोल कर वो खुद को किसी शहंशाह से कम नहीं समझते थे| लोलुआ  से उनकी दोस्ती उसके पैसो कि वजह से थी| नया घर पैसे समृधि सब एक साथ मिले तो इंसान के बहकने के आसार ज्यादा होते है| पैसे के साथ शराबियों से दोस्ती और फिर वही दौर शुरू हो गया था जो हमारे आने से पहले था|
                                      लोलुआ शराब के नशे में हर शाम चूर रहता था और परेशानियां माया चाची को सहनी पड़ती| शराब के नशे में चूर लोलुआ और उसके दोस्तों को माया चाची मज़बूरी में सहती थी|

वक्त बीतता गया और फिर उनकी जिंदगी में खुशिया आई|माया चाची माँ बनने वाली थी| वो हमारे घर पर ये बात बताने आई थी| और साथ में लायी थी गठरी भर लोलुआ कि शिकायत जो कि औरतो कि आदत होती है|शिकायत का दौर देर शाम तक चला| सारी बाते खुलकर सामने राखी गयी| सबे सूरी बात जो मुझे लगी वो थी लोलुआ के दोस्तों कि छिछोरी हरकते जो माया चाची को मानसिक तौर पर परेशान करती थी| हमलोगों ने फिर लोलुआ से बात करने कि ठानी| हम उसके घर पर थे अगले दिन| माया चाची जिसे अपने शब्दों म दैत्य बता रही थी वो दिन में एक देवता तुल्य इंसान जान पड़ रहा था| लोलुआ ने शराब घर में ना पिने कि बात पर शःमती जताई|
                                                                         सबकुछ ठीक ठाक चलने लगा| माया चाची ने दो लडको को जन्म दिया| नाम आशीष और नीतिश रखे| वक्त के साथ साथ बच्चे थोड़े बड़े हो गए|जहा हम क्रिकेट खेलते थे वही वो बच्चे भी खेला करते थे| जैसे ही शाम को लोलुआ घर आता था वो उससे पैसे मांगते और दूकान कि ओर दौड पड़ते| उन्हें गुब्बारों का शौक था| फिर हम सब मिलकर उन्हें चिढाते हुए कहते थे-

लोलुआ के बाते दौड दौड दोकना
कि लबे रे बेटा लाल लाल फोकना??

वो इस बात पे खूब चिढते और हम सारे मिलकर उन्हें सताते थे| घूमते घूमते वक्त का पहिया उस एक और सुखद साल को अंत पे ले आया था| दिसम्बर कि धुप सुहानी हो चली थी|  फिर एक दिन हमने सोचा कि चलो आज लोलुआ के घर चले| हम सब उसके घर पहुचे तो वह जो देखा वो देखने लायक नहीं था| लोलुआ अपने ३-४ शराबी दोस्तों के साथ शराब के नशे में चूर था| लोलुआ चाची उनके लिए कुछ खाने का बना कर परोस रही थी तो उनमे से एक ने माया चाची के शारीर को हाथ लगाया| लोलुआ ने सब देखकर भी अनदेखा कर दिया| मुझसे ये बर्दास्त नही हुआ और मैंने एक लात मारते हुए उस शख्स को किनारे कि  ओर कर दिया| नशे में चूर वो वही पड़ा रहा| बाकी शराबी चुप चाप वह से निकल गए| अब उस आँगन में हमारे परिवार के अलावा लोलुआ और माया चाची थे| लोलुआ अपने दोस्तों कि बेइज्जती से तिलमिलाया हुआ था| अपने गुस्सा उसने माया चाची पर उतारते हुए कहा कि
 "शाली क्या रिश्ता है तेरा इनलोगों से जो हर बार रोते हुए इनके पास चली जाती है"
चुप चाप घर में बैठा कर वरना हाथ पैर तोड़ दूँगा फिर घूमते रहना जहा जहा घूमना हो......

मेरे पापा से ये बर्दाश्त नही हुआ और वो लोलुआ के पास जाकर खड़े हो गए| पापा को पास खड़ा देखकर न जाने उसे क्या हुआ उसने पापा को मारने के लिए पास पड़ी कुर्सी उठा ली| उस एक पल में मेरी माँ ने मुझे यु देखा मानो वो कह रही हो कि - बेटे अब वक्त आ गया है कुछ करने का बचा ले अपने पापा को| सारा क़र्ज़ चुकता कर दे| मैंने बिना कुछ सोचे समझे लोलुआ को जोर का धक्का दिया| वो वही पास में जाकर गिर पड़ा| फिर उठा और लडखडाकर गिर पड़ा| माया चाची कि पलके भीग चुकी थी| हमने वहाँ से उठाकर लोलुआ को बिश्तार पे लिटाया और घर कि ओर चल पड़े| ४-५ साल पुराना रिश्ता अब टूटने कि कगार पर आ चूका था| हमने फिर सारे ताल्लुकात तोड़ लिए उनलोगों से| २-३ बार माया चाची हमारे घर आई हमसे माफ़ी मांगने| पर हमने टूटे रिश्तों को ना जोड़ना ही उचित समझा|

                                      कैलेंडर उस दिन ३१ दिसम्बर कि तारिख दिखा रहा था| साल का अंत| उस रात में देर तक पढ़ रहा था ताकि पहली जनवरी को मस्ती करू तो माँ पापा रोके नही मुझे| रात के २ बज चुके थे|पटाखों का शोर कम हो चला था| नागपुरी गाने कानो को परेशान कर रहे थे| तभी पास से किसी शराबी के चिल्लाने कि आवाज़ आई| फिर यु लगा मानो कोई हमारे दरवाज़े के सामने गिर पड़ा हो|
                                       दरवाज़ा खोला तो देखा पास ही लोलुआ शराब पीकर गिरा हुआ था| नशे में चूर| मैंने माँ पापा को बुलाया| वो तबतक सम्हाल चूका था खुद को| माँ को देखते ही उसने कहा -

काकी हाम लोलुआ हियो चिन्ली कि ना (चाची मै लोलुआ हू आपने पहचाना या नहीं)

माँ ने जवाब दिया- तुने कसम खायी है क्या कि शराब पीना नहीं छोडेगा?और ये कपड़ो में क्या रखा है?

लोलुआ ने तभी अपनी कपड़ो से पैसे निकलते हुए कहा- चाची मायवे कहियो इतना पैसा नाय दाखले हे| वकरा  आज खुश केर  दबे काकी (चाची माया ने कभी इतने पैसे नहीं देखे है|आज मै उसे खुश कर दूंगा)

पैसे काफी थे|कुछ ३०-४० हज़ार रहे होंगे|ना जाने कहा से लूट के लाया था| पूछने पर कहा उसने कि जुए में जीते है| माँ ने तभी उससे कहा

देख लोलुआ तू नशे में है ये पैसे मै रख देती हूँ कल आके ले जाना और अभी १० हज़ार रख ये माया को जाकर दे देना|

जाते जाते वो कह गया कि आज के बाद शराब नहीं पिएगा और न ही माया चाची को मारेगा|माफ़ी भी मांगी उसे| वो उस दिन भी नशे में थे और आज भी पर शायद आज कोई और ही रूप दिखाकर हमे सोचने पर मजबूर कर गया कि वो कही न कही आज भी अपने अंदर अच्छाई छुपाये थे|

माँ ने दरवाज़ा बंद किया और फिर सरे पैसे अल्मिरे में डालते हुए मुझे भी सो जाने को कहा| मै भी सो चूका था| तभी अचानक दरवाज़े पे दस्तक हुई| माया चाची परेशान थी|लोलुआ अबतक घर नही पंहुचा था| सुबह के ७ बज चुके थे|तभी किसी ने कहा कि उसने उसे हरलालवा के घर जाते हुए देखा था|

                                    इस अपरिचित सी आवाज द्वारा कहे गए शब्दों से ना जाने कैसी बिजली सी कौंधी मेरे मन में कि फिर मै और पापा दोनों हरलालवा के घर कि ओर दौड पड़े| मोहल्ले वाले भी हमारे पीछे आये|  जैसे ही हम हरलालवा के घर पहुचे हमने देखा कि वो किसी चीज को बोरे में लपेट कर कही ले जा रहे है| हमे आता देखकर उन्होंने सबकुछ छोड़कर भागने  उचित समझा पर तभी वो दोनों भाई पकडे गए| हमने बोरे को खोल कर देखा तो उसमे लोलुआ कि लाश पड़ी थी| बात साफ़ हो चुकी थी|

               पुलिस आई और पंचनामा हुआ| उनदोनो ने बयां दिया कि लोलुआ उनके घर बकाया पैसे देने आया था और फिर न जाने कैसे फिसल कर कुए में गिर पड़ा| थोड़ी ही सख्ती और सजा कम करने के एवज में उन्होंने सब कबूल लिया| उन्होंने लोलुआ को जान बूझकर  मारा था|

बात यही खत्म हो गयी माया चाची अपने मायके में रहती है आजकल| पर आज सुबह जब मै उस कुए के पास से गुजार रहा था तो यु आभास हुआ मानो लोलुआ वहाँ कुए कि मेड पर बैठा हुआ हो| हाथ में एक शराब कि बोतल लिए|
                        शायद लोगो को ये बताने के लिए कि जिस शराब कि बोतल को उसने ताउम्र गले लगाये रखा उसी शराब कि आखिरी घूंट के साथ आखिरी सांस ने भी उसका साथ छोर दिया| शायद यही चाहता है वो भी कि कोई और घर शराब कि वजह से ना लूटे| कोई और मांग न उजड़े|....

                                                                         


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